सोमवार, 8 जुलाई 2013

मुकम्मल वख्त

जग कर भी सोने वाले इन्सान को जख्म कहाँ दिखते है ,
उम्मीद से जीने वाले ही राह चुनते है ,
मुकम्मल वख्त कब होता है ,
जीने वाले कभी नहीं थकते है 
रात के सफ़र को सुबह होने  तक संभलकर रखो ,
दीवानों जिंदगी को  संभलकर रखो,
हर सुबह उजालों को  संभलकर रखो,
मौन यूही वख्त करवट कब ले,
केदारनाथ को  संभलकर रखो। 


-------मनोज "मौन "